ज्योतिष में नवांश का महत्व - कृष्ण कुमार
Jyotish Mein Navansh Ka Mahatva by Krushna Kumar
भारतीय ज्योतिष में नवमांश कुण्डली अत्यंत महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। नवमांश कुण्डली को लग्न कुण्डली के बाद सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। लग्न कुण्डली शरीर को एवं नवमांश कुण्डली आत्मा को निरुपित करती है। केवल जन्म कुण्डली से फलादेश करने पर फलादेश समान्यत सही नहीं आता। पराशर संहिता के अनुसार जिस व्यक्ति की जन्म कुन्डली एवं नवांश कुण्डली में एक ही राशि होती है तो उसका वर्गोत्तम नवमांश होता है वह शारीरिक व आत्मिक रुप से स्वस्थ होता है। इसी प्रकार अन्य ग्रह भी वर्गोत्तम होने पर बली हो जाते है एवं अच्छा फल प्रदान करते है। अगर कोई ग्रह जन्म कुण्डली में नीच का हो एवं नवांश कुण्डली में उच्च को हो तो वह शुभ फल प्रदान करता है जो नवांश कुण्डली के महत्त्व को प्रदर्शित करता है। नवांश कुण्डली में नवग्रहो सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि के वर्गोत्तम होने पर व्यक्ति क्रमश: प्रतिष्ठावान, अच्छी स्मरण शक्ति, उत्त्साही, अत्यंत बुद्धिमान, धार्मिक एवं ज्ञानी, सौन्दर्यवान एवं स्वस्थ और लापरवाह होता है
फलित मे नवांश का बहुत महत्व है l पहले हम समझ ले कि नवांश है क्या ? हमे पता है कि प्रत्येक राशि या भाव 30 डिग्री का होता है l जब इस भाव को नौ बराबर भागो मे बांटा जाए तोह प्रत्येक भाग को नवांश कहा जाएगा ल यानि प्रत्येक भाग 3 1/3 डिग्री अर्थात 3 अंश 20 कला का होता है l उदाहरण के तोर पर प्रथम राशि मेष को अगर हम नौ बराबर भागो मे बांटे तो मेष राशि के प्रथम (3 अंश और 20 कला) भाग अर्थात पहले नवांश का स्वामी स्वयं मंगल होगा l अब ग्रह बल की बात करे तो जब कोई ग्रह लग्न कुंडली मे जिस राशि पर स्थित है l उसी राशि मे नवांश मे स्थित हो तो वह ग्रह बलशाली व अति शुभ माना जायेगा l नवांश कुंडली से हम किसी नीच या शत्रु शैत्री ग्रह के बलाबल व शुभाशुभ का ज्ञान अधिक सटीकता से प्राप्त कर सकते है l उदाहरण के तोर पर किसी कुंडली मे गुरु नीचस्थ हो कर मकर राशि मे स्थित है और यही ग्रह मकर राशि के प्रथम नवांश मे (जो कि मकर ही है) नवांश कुंडली मे आए तो वर्गोंत्त्मी हो कर शुभ फलदायक माना जायेगा l इसी प्रकार अगर जन्मांग मे कोई ग्रह शत्रु राशि मे स्थित है परन्तु नवांश कुंडली मे मित्र शैत्री मे जाए तो तटस्थ या शुभ हो जायेगा l
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