रावण संहिता
लंकापति रावण के दसासन होने को उसके बहुमुखी ज्ञान का प्रतीक भी माना जाता है। वह दशों दिशाओं का ज्ञाता था। उसे सूर्य-सारथी अरुण ने ज्योतिष का ज्ञान ज्ञान दिया था। वह त्रिकालज्ञ था। दशग्रीव अनन्य उपासक ता गुह्य विधाओं के अधिष्ठाता भगवान शिव का। उन्ही से मिला था उसे तंत्रा मंत्र का परम ज्ञान। अपनी उन्ही दिव्य व अमोघ शक्तीओं के लिये फलस्वरूप रावण ने काल तक को बना लिया था अपना बंधक।
'रावण संहिता' नामक इस ग्रंथ में रावण की जीवनगाथा के साथ ही उन साधनाओं का भी वर्णन है, जिनके बल से वह त्रैलोक्य विजयी बना। इस प्रकार ज्योतिष,तंत्र-मन्त्रोपासना,चिकित्सा व शीवराधना के बारे में सरल और विस्तृत जानकारी प्राप्त करने वालों के लिए यह एक आदर्श ग्रंथ है। अब उन्हे गुह्य विद्याओं के रहस्यों को जानने के लिये अन्य ग्रंथो के पन्ने पलटने की आवस्यकता नहीं है इस एक ग्रंथ में ही सब समाहित है।
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